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Shahnaz Rahmat

Abstract

5.0  

Shahnaz Rahmat

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पहली नज़र में पहला प्यार

पहली नज़र में पहला प्यार

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उस दिन जब पहली बार तुम्हें

 बस एक नज़र ही देखा था।

यूनिवर्सिटी के कैंपस में 

वो एक नज़र है ऑफते-जाँ !


उस एक नज़र में दिल अपना 

कब तुमको मैं दे बैठी थी। 

कुछ याद नहीं वो पल मेरी जाँ !


एकतरफा मोहब्बत के क़िस्से 

दुनिया में सुनती आई हूंँ।

लेकिन मैं कितनी पागल हूंँ 

कि बरसों बाद भी उस पल को 

मैं दिल में बसाये बैठी हूंँ।


सदियां बीतीं और साल गए 

तुमने एक वक़्त गुज़ार दिया!

 मैं अपनी नन्ही दुनिया में 

कुछ ऐसे ही मशगूल रही।


हांँ मैंने तुमको चाहा है 

बस प्यार तुम्हें ही करती हूंँ।

ये प्यार ही मेरी पूजा है 

ये प्यार इबादत है सच्ची।


ये सच्ची इबादत है दिल की 

बस प्यार तुम्हें ही करती हूंँ। 

मैं सदियों से और बरसों से 

एक तन्हाई के आलम में 

पल-पल जीती और मरती हूंँ।

बस प्यार तुम्हारा दिल में है। 


और प्यार तुम्हारा साथ मेरे

मैं तन्

हा अकेली एक लड़की 

एकतरफा मोहब्बत की खातिर 

दुनिया अपनी बर्बाद किए 


बस प्यार तुम्हारा दिल में लिए 

मैं आज भी तन्हा बैठी हूंँ।

मैं उम्र के अब उस दौर में हूंँ।

जब कोई साथ नहीं होता 

अपना या अपने जैसा ही 

अब मुझको कब मिल पाएगा ?


मैं तन्हा अकेली थी अब तक 

मैं तन्हा ही मरने वाली हूंँ।

बस प्यार तुम्हारा दिल में लिए

ये प्यार ही मेरे साथ रहा 


एक उम्र से अब इक उम्र तलक 

यह प्यार ही मेरा अपना है।

वरना मतलब की दुनिया में 

कब कोई किसी का अपना है ?

कब साथ किसी का देता है ?


हांँ ! आज भी मैं इस हाल में हूंँ

जब कोई अपना साथ नहीं 

लेकिन तुम परवाह मत करना।

तुम जिंदगी अपनी जीते थे 

तुम जिंदगी अपनी जी लेना।


खु़शियांँ जो तुम्हारी अपनी हैं

और कुछ रिश्ते भी तो होंगे

तुम उनमें ही मसरुर रहो।

तुम अपनी दुनिया में खुश हो !

मैं मरती हूं तुम मरने दो

तुम लौट के मुझ तक मत आना।


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