नज़्म - नहीं मैं वह नहीं हूं।
नज़्म - नहीं मैं वह नहीं हूं।
नहीं मैं वह नहीं हूं।
जिसे मारा था तुमने,
किसी मां के शिकम में
जिसे तुम फेंक आये थे,
किसी कचरे के डिब्बे में
किसी बच्ची को तुमने
नशीली गोलियां दीं।
हवस के तुम दरिंदे,
हवश के तुम पुजारी,
शिकारी हर कली के,
किसी को भी न बख्श़ा,
किसी भी उम्र की हो
किसी की किसी भी जात की हो।
तुम्हीं क़ातिल बने हो
बहन के, बेटियों के,
तुम्हीं ने बूढ़ी मां को,
निकाला घर से बाहर
पटक कर मारते हो,
फहस गाली भी देते,
हर एक लड़की को तुमने,
दिए झूठे दिलासे
फिर उसको छोड़कर तुम,
किसी के हो गए थे।।
मैं वह भी तो नहीं हूं,
जिसे करके बरहना
जकड़ कर रस्सियों से,
घसीटा था सड़क पर।
नहीं मैं वह नहीं हूं,
जिसे बेघर किया था
अलग बच्चों से करके,
महर वापस किया था
मैं औरत हूंँ मैं औरत,
मैं हूंँ हौआ की बेटी
मैं शोला हूंँ मैं शबनम
मैं हरगिज वो नहीं हूं,
जिसे तुम रौंद दोगे।
तुम्हें मैं मार दूंगी,
जला डालूंगी मैं तुमको
मिटा डालूंगी मैं तुमको
तुम्हें मैं ख़ाक कर दूंगी
नया ये रुप है मेरा
नया ये अज़्म है मेरा।
नहीं मैं वह नहीं हूंँ।
