नज़्म - सवाली रोटियां
नज़्म - सवाली रोटियां
बेबसी व लाचारी,
बेकसी व बिमारी
किस क़दर परीशाँ थे
किस क़दर हरासां थे
कैसी तालाबंदी थी ?
भूख से लड़ाई थी
जान पे बन आई थी।
चल पड़े थे पैदल ही
अपने गांव की जानिब
चन्द रोटियां ले कर
भूख से लड़ाई में,
रोटियां सहारा थीं।
रोटियां ही नेअमत थीं
रोटियां ही क़िस्मत थीं।
रोटियां जो सूखी थीं,
रोटियां जो बासी थीं।
रोटियां ही सब कुछ थीं
जिस्म अब है टुकड़ों में
बेगुनाह् ग़रीबों के
रोटियां सलामत हैं।
पटरियों पे बिखरी हैं
रोटियां सवाली हैं
रोटियां सवाली हैं।
