STORYMIRROR

Arunima Thakur

Abstract

4  

Arunima Thakur

Abstract

हृदय की लेखनी से.....

हृदय की लेखनी से.....

1 min
343

माँ धरती का रूप,

पिता आकाश हुआ करता है।

माँ आस्था की धूप,

पिता विश्वास हुआ करता है।

माँ के उपकारों का कोई

मोल चुका ना पाया l


और पिता की कठिन साधना

कोई समझ ना पाया I

माँ है अक्षर शब्द,

पिता आख्यान हुआ करता है।


माँ गीता का पाठ,

पिता व्याख्यान हुआ करता है।

सतत अभावों पीड़ाओं में

मर्यादित रहता है।

सुत हित गृह सुख त्याग,

पिता निर्वासन दुख सहता है I


माँ पावन अनुभूति,

पिता अस्तित्व हुआ करता है।

माँ है सहज प्रतीत,

पिता व्यक्तित्व हुआ करता है।

कैसा भी हो पुत्र,

पिता के उर में रहा समाया।

पिता मगन मन देखा करता,

सुत में अपनी छाया I


पाकर सुत सानिध्य, पिता

धनवान हुआ करता है।

माँ है श्रद्धा भक्ति,

पिता भगवान हुआ करता है

जीवन की अटपट राहों पर

उंगली पकड़ चलाता I


उन्नति के उन्नत शिखरों पर

बाहें थाम चढ़ाता I


सुत माँ का दृग बिंदु,

पिता का उर बन्धु हुआ करता है।

माँ की ममता और

पिता की समता कहीं नहीं है।

मात -पिता से बढ़कर

जग की कोई छाँव नहीं है I


माँ शीतल चंद्रिका,

पिता दिनमान हुआ करता है।

माँ वंशी की तान

पिता घनश्याम हुआ करता है।

माँ धरती का रूप,

पिता आकाश हुआ करता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract