क्यों सोचें...
क्यों सोचें...
जीवन के बाद..
अजीब सा विषय है ना
कोई कैसे लिख पायेगा..?
तो बेहतर है जीवन के बाद
की परिकल्पना ही मत करो।
पाप पुण्य नरक से मत डरो।
जी लो आज इस जीवन को
क्योकि यह तुम्हारे बस में है।
तुम्हारे बस में है करना नेक काम
नही कर सकते दान पुण्य
तो कुछ नही, बाँटो मुस्कुराहटें
सहला दो दुलार से किसी सड़क
चलते अनाथ बच्चे का सिर।
पकड़ लो थैला किसी बुजुर्ग के
अशक्त हाथों से, दो सहारा उन्हें।
जो जीवन से संघर्ष कर रहे हो
बैठ जाओ ऐसे किसी बीमार
अपरिचित का हाथ थाम कर
करो कुछ ऊँट पटांग बाते
सुनो कुछ उनकी अनकही यादें
बहुत है काम करने को
इस धरा पर, इस जगत में
सच मानो तुम्हे फुरसत ही
नही मिलेंगी , यह सोचने की
कि जीवन के बाद क्या..
वैसे प्रश्न है तो उसका उत्तर भी होगा
जीवन के बाद भी जीवन ही होगा।