STORYMIRROR

Arunima Thakur

Tragedy

4.0  

Arunima Thakur

Tragedy

बच्चे और बचपन

बच्चे और बचपन

1 min
265


मेरा बचपन आज भी 

मेरी उंगली पकड़े था ।


पर बच्चों का बचपन न

जाने कहां गुम हो गया था ।


न धूल में लोटा है, ना मिट्टी में खेला है 

यह कैसा बचपन जो इतना अकेला है।


मैं बड़ा था फिर भी 

मुझ में बच्चा जीवित था।


वह बच्चा बिना बचपन 

ही के बड़ा हो गया था।


ना गन्ने तोड़ कर खाए हैं,

ना पेड़ों पर चढ़ा है।


यह कैसा बचपन है ?

जो बिना शैतानी के,


बिना उधम मचाये ही, 

बड़ा हो गया है ।


घोंघे, सींपी, कागज की नाव 

न जाने कहां खो गए ?


आजकल के बच्चे इनके 

बिना ही बड़े हो गए ।


यह बच

्चे हैं तो  

बेफिक्रे क्यों नहीं है ?


इनके सिर पर तनाव 

किस बात का है ?


इनके ना दोस्त हैं ना साथी हैं 

ना खेलने के लिए गलियाँ ना मैदान


ना पेड़ है, बच्चों के चढ़ने के लिए

 ना खाने के लिए गन्ने के खेत ।


सच है समाज ही आज बच्चों के 

बचपन के लायक नहीं रहा।


माँ बाप की गलती भी नहीं है ।

चाहते तो वह भी है 

खेले बच्चों के साथ


पर हसरतें और जरूरते, 

बांध देती है जंजीरे ख्वाहिशों पर ।


सच है अब नहीं आती है 

बारिशें भी पहले जैसी ।


उन्हें मालूम है अब वो बचपन नही रहा।

अब के बच्चे भी बच्चे नहीं रहे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy