अनकहे जज़्बात
अनकहे जज़्बात
लोग हंसते हैं.पर
परवाह किसको है..?
वह हर रोज अपनी डायरी को
सीने से लगाकर सोती है।
उसने कहा था..
कभी उससे...बस यूं ही एक दिन
या किसी रात को मिले
कुछ अनमोल क्षणों में
अभी तुम बहुत व्यस्त रहते हो।
घर परिवार, बच्चो की जिम्मेदारी
दुनियादारी निभाते हो,
बस मेरे लिए समय नही निकल पाते हो
मेरे साथ बातें भी नहीं कर पाते हो।
मैं सब लिखती रहूंगी
इस डायरी में, बाते इक इक पल की
वह सब जो कहना चाहती हूँ
पर कह नही पायी,
ना तुम समय निकाल पाएं
ना मैं कुछ पल चुरा पायी
बाद में तुम जब रिटायर हो जाओगे
तब हम दरिया किनारे बैठेंगे
मैं तुमको यह सब पढ़ कर सुनाऊँगी।
तब तो तुम मुझे समय दोगे ना ?
ऐसा नहीं था कि दोनों में प्यार नहीं था
या कि वे बातें नहीं करते थे।
पर कुछ अनकहे जज्बात
उस डायरी में दफन थे ।
व्यस्त ज़िन्दगी और
दुनियादारी के कफ़
न में।
लगता था बहुत समय मिलेगा बाद में,
तब सिर्फ हम दोनों ही रह जाएंगे
सारी जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी
तब चैन से बतियाएँगे
वह धीरज से जी रही थी।
एक दिन जब वे रिटायर होंगे।
तब उनसे खूब बतियाऊंगी ।
अपने सीने के राज, छोटी-छोटी बातें,
अनकहे जज्बात सब इनको सुनाऊंगी ।
पर रिटायरमेंट से पहले ही वह
इस दुनिया से बेगाना हो गया ।
इनकी रिटायरमेंट के बाद
साथ बैठकर, बात करने की
अभिलाषा अधूरी ही छोड़ गया।
पर वह आज भी आस नहीं छोड़ी है।
वह डायरी साथ ही रख कर सोती है ।
मन ही मन में मुस्काती है
और अपने पति से कहती जाती है ।
मुझसे पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है।
मैं मरते वक्त भी डायरी
अपने साथ लेकर आऊंगी।
तुम मुझे भले ही यहाँ नहीं मिले ,
पर मैं अपने सारे अनकहे जज्बात
वहां आकर तुमको सुनाऊंगी।