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Arunima Thakur

Abstract Tragedy

4  

Arunima Thakur

Abstract Tragedy

किरचें....

किरचें....

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360

(1)

रोने से भी दिल के दर्द 

कहाँ कम होते है यारों

झूठी ही सही, हँसी के

खिलौने से, आओ इसे

कुछ पल बहलाया जाएं


(2)

कंधे झुक जाते है किसी

अपने के जाने से

सच है यादों का बोझ

बहुत भारी होता है।


(3)

तू कर अपनी मर्जी

मैं अपनी मर्जी करती हूँ

तू दे आँखों में आँसू

मैं हँसी होंठ पर रखती हूँ।


(4)

चला आता है हर मौसम

जा जा कर

क्यों तेरे आने का मौसम

नहीं आता


(5)

सुनो भगवान, जब हिसाब 

करोगे मेरे पापों का 

तुम्हें मेरे बेहिसाब जख्मों का 

हिसाब भी देना होगा


(6)

मेरे रकीब तू भी 

मेरे भगवान जैसा है

मैं खुश रहूँ ...उससे 

भी यह देखा नहीं जाता


(7)

इसे जी कर ही खत्म कर सकते है

यह ज़िन्दगी है यारों

चाहने से खत्म नहीं होती ।


(8)

क्यों चिरागों को रोशन कर रखा है ?

क्या मेरा जी जलाकर मन भरा नहीं ?


(9)

सुई हो या रिश्ते, नोक पर 

इक उंगली लगा कर रखिये

ज्यादा नहीं पर थोड़ी सी 

दूरी बना कर रखिये


(10)

दिल दुखाने के लिए ही

तुम आओ तो सही 

लौट कर जाने के लिए ही 

तुम आओ तो सही



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