जब हंस के ही जीता हूँ तो जाने क्यों याद आती है तेरी। जब हंस के ही जीता हूँ तो जाने क्यों याद आती है तेरी।
क्यों न एक नए दौर का आगाज़ मिलकर अब करें। क्यों न एक नए दौर का आगाज़ मिलकर अब करें।
काश! कहीं से कोई अलादीन का चिराग मिल जाता, पल पल घटता मानवता का स्तर थोड़ा बढ़ जाता। काश! कहीं से कोई अलादीन का चिराग मिल जाता, पल पल घटता मानवता का स्तर थोड़ा ब...