अलादीन का चिराग
अलादीन का चिराग
काश! कहीं से कोई अलादीन का चिराग मिल जाता,
पल पल घटता मानवता का स्तर थोड़ा बढ़ जाता।
लौटा देता वो फिर पुरानी बुज़ुर्गों की वही कहानियाँ,
पीपल तले जो काका सुनाते अपने ज़माने की निशानियाँ।
काश! कहीं से कोई अलादीन का चिराग मिल जाता,
जो किस्से, कहानी और साथ में मुस्कुराहटें लौटा देता।
लौटा देता वो बचपन के साथी, वही गलियाँ और दोस्त
पगदंडी पर चलते थे, उछलते थे, थामें हाथों की डोर।
काश! कहीं से कोई अलादीन का चिराग मिल जाता,
यारों की यारी के प्रतिबंधों को एक बार हटा देता।
बड़ों का आशीष, छोटों का प्यार, लड़कपन के दिन
अपनत्व, आत्मीयता, प्रेम के सुख भरे वो दिन।
काश! कहीं से कोई अलादीन का चिराग मिल जाता,
फिर वही एकता, फिर वही अहसास, प्रेम दिला देता।
काश! कहीं से कोई अलादीन का चिराग मिल जाता।