भावनाएँ और पन्नें
भावनाएँ और पन्नें


भावों को शब्दों में भरकर
पन्नों पर बिखराते हैं जो
बंजर मन में नेह-सुमन की
नूतन पौध लगाते हैं जो
जिनसे करुणा का उद्गम है
जिनसे रस बरसा करता है
शब्द शब्द जिनका मन के
अनुभावों को तरसा करता है
गहरे पानी पैठ प्रेम का
मोती एक निकाला जिसने
ज्ञान और रस के संगम को
भरकर भाव संभाला जिसने
जिसने संबंधो के स्वर को
गीतों में गढ़कर गाया है
जिसने छंदों में गज़लों में
प्रेम सुधा को बरसाया है
जिसने तुमसे नेह किया है
और नए प्रतिमान ग
ढ़े हैं
उसमें प्रेम नहीं होता है
सबने ये इल्जाम मढ़े हैं
बहस व्यर्थ है इसीलिए मैं
चलो तुम्हारी मान रहा हूँ
क्यों मन में ये प्रश्न उठे हैं
इसको भी पहचान रहा हूँ
जब कविता से खुद को जोड़ा
मुझपर नेह उलीचा सबने
फिर जीवन ही मेरा कविता
कहा दिखाया नीचा सबने
हाँ जो भी कहना चाहा
इस मन से उसको स्वर देता हूँ
कवि हूँ सीधा बोल न पाता
तो भावों को भर देता हूँ
इसे समझना कठिन नही है
पर अपनापन लाकर देखो
कितना प्रेम भरा है मुझमें
आओ प्यार जताकर देखो।