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Sarita Saini

Abstract

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Sarita Saini

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हमे तुमसे प्यार कितना

हमे तुमसे प्यार कितना

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 हमे तुमसे प्यार कितना..

तुम ये कभी समझ न पाए,

हर बार चेहरा ही देखा..

मन कभी पढ़ न पाए ।


कैसे करती मैं कुबूल इश्क़ को.. 

ज़माना बीच में था,

शायद तुम्हें पाना नहीं मेरे ..

नसीब में था ।।


तन्हाई में तुम बिन हम..

ख़ुद को तड़पता पाए,

जबसे रखा है इश्क़ की..

गलियों में कदम।


हर बार गए हैं दुनिया से..

हम ठुकराए,

फिर भी तुम आज तक..

प्यार को मेरे समझ न पाए।।


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