खुद से अनजान मानवी
खुद से अनजान मानवी
परिपूर्ण चेतना बनकर धड़कता है जो दिल में सदा
उस आत्मा से मानव अनजान ही रहता है सदा
मानो न ईश्वर को फ़िर भी वो कृपा करता रहता सदा
स्वार्थी इंसान दुख पड़ने पर हरि से मांगता है सदा
नजरों से देखे उपकार अनंत भगवान का
फिर भी न माने कभी पाड वो भगवान का
भीतर न देखे जो चलाता मधुर सांस उसकी
ख़ुशी मिले तो नादान मानवी अहंकार में भूलता है सदा
जीवन है मधुर भेट हरि की याद रखना जरूरी सदा
उसके बिना मानव है अधूरा सम्पूर्ण सत्य जीवन का
हर धड़कन में सूर गूंजे उसका याद रखना हरि सदा
ईश्वर कभी न भूले तो हम क्यों भूले उस हरि को सदा.?
