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Shruti Gupta

Abstract

4.7  

Shruti Gupta

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कुछ कहानी में कहो

कुछ कहानी में कहो

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कुछ कहानी में कहो

कि जिससे नींद में खलल

गाड़ियों का शोर

एक नई सुबह का आगाज़ लगे

रोज़ का कायम दस्तूर

ये बेज़ार काम

बनते हुए जिम्न का उल्लास लगे


कुछ कहानी में कहो

कि जितनी दफा सवारी करें

मंजिल पहुंचने के साथ

आरजू भी फलक-परवाज़ हो

चाल में अल्फाज में नुदरत

उधेड़-बुन की चहल-कदमी में

तहसीन के लायक अंदाज हों


कुछ कहानी में कहो

कि खलिश की दखल

जेहद, फ़र्त-ए-ग़म में

रूमानी हयात लगे

और वक्त की जेबों में

मासूमियत से भरे

खैर के क़ासिद आबाद लगें


कुछ कहानी में कहो

कि जब नींद दुश्वार लगे

लम्बी रात लगे

तो मंज़र गायब हो जाए

छोटी खुशियों का बड़ा जश्न

ख़ास-उल-ख़ास के साथ हो

इस कहानी का अंजाम

ख़त्म-बिल-खैर हो जाए


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