ये चेहरा
ये चेहरा
मुरझाए गेसुओं से ढका रहता है
नीरस ये चहरा थका रहता है
माथे की शिकन का अब पता नहीं करता
तबस्सुम की रेखाओं की खता नहीं करता
सतह से खुरदरा बिगड़ा हुआ रंग
नक़ाशी में बेरुखी मज़मून तंग
आँखों के घड्ढों में
हार का साया रुका रहता है
सहमा गिर्द-ओ-पेश से
ये चेहरा
आँखों से झुका रहता है।
