STORYMIRROR

Shruti Gupta

Abstract

4.3  

Shruti Gupta

Abstract

साया

साया

1 min
219


एक शख्स से मुलाकात हुई

वाकिफ़ हूँ ज़ात से

दो कदम पहले की मेरी ज़िंदगी

जी रहा है मेरे साथ में

साये में रहता हो मानो मेरे

तकरारी हर बात में

दो चार फीट की दूरी से

मुड़-मुड़ कर गौर करती हूँ

रफ्तार बराबर करने का

मुसलसल ज़ोर करती हूँ

मगर वो साये में रहना चाहता है

खुद ही चुनेगा अपनी लौ

बसारत में ना होगा मेरे

अलग हो जाएंगे रास्ते दो

और घुल जाएगा एक शब में साया

काबू ना होगी हस्ती वो ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract