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Meera Ramnivas

Abstract

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Meera Ramnivas

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चांद से गुफ्तगू

चांद से गुफ्तगू

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आसमान में 

 शरद पूनम का चांद  

मुस्कुरा रहा था

श्वेत चांदनी से

रात को नहला रहा था

मैं चांदनी में नहाती रही

 चांद से श्री कृष्ण के 

 सौंदर्य को सुनती रही

शरद पूनम की रात

नटवर नागर श्री कृष्ण

 गोपियों संग रास करते थे  

रास देखने देव भी

धरा पर उतरते थे 

 चांद तो महारास का

 सदा दर्शन करता रहा है

राधा कृष्ण के सौंदर्य का

 रसपान करता रहा है 

मैंने चांद से पूछ लिया 

क्या शरद पूनम को

 चांदनी से अमृत झरता है

चांद ने बतलाया

 राधा कृष्ण के रूप माधुर्य का

रसपान किया है मैंने 

वही अमृत बन झरता है 

 एक बार स्वं महादेव  

गोपी रुप धर

रास देखने आये थे,

शिव का गोपी रुप देख 

 श्री कृष्ण मुस्कुराए थे

रास निहारने समय भी ठहर जाता था

देवलोक वृंदावन में उतर आता था

चांद से मैंने रोहिणी और

 उसके प्यार की मधुर बातें सुनी

दक्ष के घोर श्राप की बातें सुनीं

प्रभास में किया शिव आराधन सुनाया

 आशुतोष शिव का वरदान सुनाया

शुक्ल पक्ष में पंद्रह दिन घटने 

कृष्ण पक्ष में पंद्रह दिन बढ़ने  

 का विधान सुनाया

अमावस और पूनम के आने का

रहस्य विधान सुनाया 

मैंने चांद से पूछा

कब और कैसे सज गए 

तुम शिव भाल पर 

अमृत मंथन का हलाहल पीकर 

महादेव को भीष्ण गर्मी लगी थी 

 तब शिव के श्रीभाल पर 

शीतलता मैंने रखी थी     

 मेरे तुच्छ उपकार को

 शिव ने इतना मान दिया 

 अपने श्री भाल पर 

मुझे स्थान दिया।।

 


          


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