काक भुशुंडि के वंशज
काक भुशुंडि के वंशज


सुबह टहलने उद्यान पहुंची
सामूहिक कांव कांव सुन चौंकी
बहुत-से कौवों की भीड़ जमा थी
उद्यान में कौवों की सभा जमी थी
इतने में एक बुजुर्ग कौवा आया
सभी कौवे ने शांत होकर सर झुकाया
शायद वो उनका बड़ा बुजुर्ग था
वो उनकी सभा का अध्यक्ष था
उसने वक्तव्य शुरु किया
प्रिय बंधुगण
हमारा इतिहास गौरवशाली रहा है
मेरे दादा ने बचपन में मुझसे कहा है
गर्व की बात है कि
हम तात काक भुशुंडि के वंशज हैं
वही काक भुशुण्डि जो
तुलसी रामायण के पात्र हैं
वही काक भुशुण्डि जिन्होंने
गरुड़ को राम कथा सुनाई
जिन्होंने राम की बाल- लीला देखी
राम की झूठी रोटी खाई
हम घर की मुंडेर पर
कांव कांव कर
अतिथि आगमन की सूचना देते हैं
कुछ भोजन हमें भी खिलाना
प्रार्थना कर देते हैं
हमारी चतुराई जगत विख्यात है
चतुर कौवे की कथा प्रख्यात है
हम मटके के तले में ठहरा
थोडा पानी भी चतुराई से
ऊपर लाकर पी लेते हैं
श्राद्ध का खाना पितरों को
पहुंचा देते हैं
श्रीराम के वरदान स्वरुप
हमें खिलाया गया खाना
पितरों तक पहुंच जाता है
इसलिए श्राद्धपक
्ष में हमें
खाना खिलाया जाता है।
आज हम यहां एक निर्णय लेंगे
कुछ लोग हैं जिनका श्राद्ध न लेंगे
जो लोग मां-पिता की अवगणना करते हैं
जीते-जी उनकी सेवा टहल नहीं करते हैं
ऐसे लोगों का श्राद्ध हम स्वीकार न करेंगे
जीते-जी तरसाते हैं
मरने के बाद पकवान खिलाते हैं
हम स्वीकार नहीं करेंगे
इंसान अब स्वार्थी हो गया है
मैं मैं में सिमट गया है
महसूस तो कर ही रहे हैं हम
कि अब कितने घरों में
मेहमान की सूचना देते हैं
अब कहां रिश्तेदार
एकदूजे के यहां दस्तक देते हैं
मानव की खुदगर्जी
इतनी बढ़ गई है कि
प्रकृति को बिगाड़ रहे हैं
हमारा आशियाना उजाड़ रहे हैं
घर की ताज़ा रोटी व खीर
अब कहां हमें मिलती है
बांसी बर्गर पिज्जा घरों में खाते हैं
वही खाने को मिलती है।
अब हमें सतर्क रहना होगा
अपने बच्चों को सिखाना होगा
उन्हीं घरों के आसपास रहो
जिनका आहार विहार अच्छा है
उन्हीं आंगन खाओ
जिनका मन निर्मल और सच्चा है
उन्हीं के अन्न कण खाओ
जो प्रेम भाईचारा रखते हैं
उन्हीं के दर्शन पाओ
जो ईश्वर में भरोसा रखते हैं।