भूमिपुत्र
भूमिपुत्र
हर आषाढ़ अच्छी बरसात,
की कामना करता है।
हर फसल अच्छी फसल,
की चाहना करता है ।
खेतों में फसल के साथ ,
अपने सपने उगाता है।
खेतों से फसल के संग
अपनी जरूरतें काटता है।
खेतों में ही तो उगते हैं ,
परिवार के सपने ।
भांजे भांजी की शादी में,
भात भरने के सपने ।
खेतों में ही तो उगते हैं ,
दीवाली पर कपड़े सिलाने के सपने।
महाजन का कर्ज चुकाने के सपने ।
कभी अतिवृष्टि कभी सूखा,
मौसम
की मार सहता है
प्रभु प्रसाद समझ
हर मुश्किल सहता है
कड़ी धूप में निराई करता है ,
कड़ी ठंड में सिंचाई करता है।
साल भर मेहनत करके भी ,
अभावों में गुजारा करता है
परिवार की जरूरतों में
कटौती करता है
सर्दी में स्वेटर नहीं,
अलाव में ताप लेता है।
गर्मी में पंखा नहीं
नीम की हवा खा लेता है ।
हर साल नई पुरानी,
जरूरतों की फेहरिस्त ,
धरती पर हल से लिखता है।
हाथों की लकीरें घिस जाती है,
माथे की लकीरों पर भरोसा रखता है ।