STORYMIRROR

Meera Ramnivas

Abstract

4  

Meera Ramnivas

Abstract

मैं जल हूं

मैं जल हूं

1 min
294


 प्यास हर प्राणी की बुझाता हूं।

अन्न फल फूल उगाता हूं

धरा को हराभरा करता हूं।

अनेक रुपों में सजता हूं।

मैं जल हूं


भाप बन उड़ता हूं बादल बन जाता हूं,

दूब पर बिखरता हूं ओस बन जाता हूं।

पिघल कर बहता हूं प्रपात बन जाता हूं, 

झर झर झरता हूं झरना बन जाता हूं। 


ठिठुर कर जमता हूं बर्फ बन जाता हूं, 

 गढ्ढे में ठहरता हूं तालाब बन जाता हूं।

पर्वतों से घिरता हूं झील बन जाता हूं, 

चुगते हैं रा

जहंस सरोवर बन जाता हूं।


खारा होकर बहता हूं सागर बन जाता हूं, 

पर्वतों से निकलता हूं नदी बन जाता हूं।

आंखों से बहता हूं अश्रु बन जाता हूं,

परिश्रम में बहता हूं पसीना बन जाता हूं।


गंदा होकर बहता हूं नाली बन जाता हूं,

सीप में गिरता हूं मोती बन जाता हूं।

पर्वत पर जमता हूं हिम बन जाता हूं, 

बादलों में जमता हूं ओले बन जाता हूं।


शिवलिंग पर चढ़ता हूं पावन बन जाता हूं,

प्याऊ पर रखा जाता हूं पुण्य बन जाता हूं।


Rate this content
Log in