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SUNIL JI GARG

Abstract

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SUNIL JI GARG

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स्वास्थ्य कर्मियों की बेइज़्ज़ती

स्वास्थ्य कर्मियों की बेइज़्ज़ती

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शायद हम बचना चाहते नहीं,

बचने बचाने की आदत जो नहीं। 

वो कर रहें हैं सफ़ेद पोशाक के लोग,

कर न पायी इबादत जो नहीं। 


जो मरेंगे वो शायद हम न होंगे,

हमेशा दूध के धुले जो रहते आये हैं। 

हमें तो हर हाल में सब कुछ मिलता रहा है,

बेशरमी के दरिया हमारे दर पे बहते आये हैं। 


मगर अबकी बार का थप्पड़ कुछ,

औकात पर हमारी भारी  सा है। 

एक तरफ तराज़ू में बैठाएगा हमें,

थमता कहर नहीं जारी सा है। 


उन सेवकों ने धर्म निभाये,

बिना कद्र की लेकर तमन्ना । 

इंसानियत होती रही शर्मसार,

मानवता को अभी और है गिरना। 


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