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SUNIL JI GARG

Abstract Drama Inspirational

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SUNIL JI GARG

Abstract Drama Inspirational

तैराक

तैराक

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बहे जा रही है ज़िन्दगी आजकल 

शहतीर की मानिन्द, तैरती, उतराती

छोड़ा तो गया है मंजिल पर पहुँचने के मंसूबे से 

पर पता नहीं वह मिलती है या नहीं मिलती 


लक्कड़ और पानी की कोशिश है जारी 

सिखा के जाती है हमको हिम्मत का सबक 

उम्मीद के सहारे कायम है सारी दुनिया 

वरना काफिला ही रुक गया होता अब तक 


साहिलों से टकराना कभी गति भी देता है 

चलता रहता जब तक कोई पकड़ता नहीं 

यात्रा का एक साधन है ये भी तो दोस्त 

जो पहले से हो लक्कड़ वो अकड़ता नहीं 


अब फलसफा हुआ बहुत मेरे यार 

तैयार हो तैराक, करने की है तुम्हारी बारी 

चलो उठो मेरे भाई, भर लो उत्साह

चलो जोरों से करते हैं तैरने की तैयारी 


कठिन शब्दार्थ :-

शहतीर - पानी पर छोड़ा जाने वाला लक्कड़ 

मानिन्द - की तरह 

मंसूबा - इच्छा।


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