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SUNIL JI GARG

Abstract Tragedy Inspirational

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SUNIL JI GARG

Abstract Tragedy Inspirational

फिर जन्म लेकर

फिर जन्म लेकर

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पापा ये सब क्या कर डाला 

चित्रों ने क्यों पहनी माला 


पापा क्यों बस बन गए याद 

थोड़ा और तो देते साथ


अभी तमन्ना थी कुछ बाकी 

क्यों रूठे क्यों हमसे न की 


बस पापा इतना बतला दो 

भूल हुई क्या हमें जता दो 


छूट गए यहाँ प्रश्न ढेर से 

कैसे निकलेंगे अंधेर से 


हमें तुम्हारा पता न मालूम 

चंद रोज़ को आ जाओ तुम 


न तुम्हें पता, क्या फ़रक पड़

ा है 

अब हरेक शख्स अकेला खड़ा है 


काले पीले चेहरे हैं दिखते

पिटे हुए से मोहरे हैं दिखते


पर अब भी खेल को रहना जारी

बदल बदल के आती है बारी 


हममें कुछ दमखम जो भरा है तुमने 

चलें हैं हम सब बोझे को ढोने


यूँ करेंगे रौशन तेरा नाम 

कुछ कर जायेंगे ऐसा काम 


कि बेटे तेरे फिर बन पावें

तुझे पिता रूप में फिर से पावें 



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