बस चुप
बस चुप


जब चुप्पी सब कुछ कह सकती,
तब क्या बोलूं, और क्यूँ बोलूं।
जब सूखे पड़े नयन मेरे,
तब क्यूँ न जी भर के रो लूँ।।
और किसी में देखूँ क्या,
जब खूब बुरा हूँ मैं खुद ही।
अच्छे न लगते जब हिलते,
बन जाना बेहतर है बुत ही।।
मैं दोस्त किसी का नहीं जगत में,
पर दुश्मन हैं अच्छे लगते।
प्यार, प्रेम या दीवानापन,
शब्द सब बड़े कच्चे से लगते।।
चलो पार चलें उस पार चलें,
पर मन को साथ नहीं लेना।
डरपोक बड़ा ये साथी है,
इसके संग नाव नहीं खेना।।
पत्थर ही संगी बन सकते,
जीवन नैया में बहने को।
बहुत कुछ मैं कह चुका,
अब और नहीं कुछ कहने को।।
अब चुप को चुप ही रहने दो
भेद खोलने को न ही कहो।
बहुत सहा है मैंने ही सदैव,
इस चुप की मार तुम भी सहो।।