आईना
आईना


तुम रोज इसमें इस तरह झाँका ना करो,
ये आईना है टूट कर बिखर जाएगा।
लबों पे दर्द की हिचकियाँ न लाना कभी,
सुन के मंजर ये सारा दहल जाएगा।
तूने उठा रखी जो नज़रों से कायनात की ज़मीर,
कयामत में सरेआम मातम पसर जाएगा।
तू जो इस तरह चला करती है, अदाओं में सिमट के,
माहताब भी किसी दिन कत्लेआम कर जाएगा।