मेरी नज़र
मेरी नज़र
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मेरी नजर
धुंधली हो गई है,
ठीक
दीवार पर टंगी
तेरी तस्वीर की तरह।
भविष्य दिखता नहीं!
युग बीत रहा है!!
अतीत धुंधला-सा दिख पड़ता है!!!
वैसे ही,
जैसे चीजें दिखती हैं,
गंदलाये, बहते पानी के उस पार,
कोई चीज।
जैसे
सरक रहा हो कोई साया,
घने कोहरे में।
आँखें मीचमीचाता हूँ,
कोशिश करता हूँ।
तू,
मेरी ममता की छाया!
दिख पड़ती हैं,
ओस की अदृश्य फुहारों के पार।
एक मृग मरीचिका-सी,
एक भुलावा--सी,
जैसे
टँगा हो क्षितिज पर,
मेघ कोई!