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Kavita Verma

Abstract

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Kavita Verma

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प्रश्न

प्रश्न

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सदियों से ढूँढते हैं अपने जवाब

टकराते लोगों के जेहन में 

घर करते उनके विचारों में 

झिंझोड़ते उनका अस्तित्व 

मजबूर करते ढूँढने को उत्तर। 


भटकते भटकते पहुँच जाते 

नदिया पर्वत समन्दर पार 

लांघ जाते हर सरहद 

हर जाति, धर्म, सम्प्रदाय 

शोर करते उकसाते, रिझाते 

अपने अस्तित्व का एहसास करवाते 

बने रहते है आस पास 

ढूँढते अपना जवाब। 


कुछ होते हैं खुश किस्मत 

मिल जाती है जिन्हें मंजिल 

और हो जाती उनकी उम्र पूरी 

तसल्ली के साथ 


कुछ मंजिल के रास्ते पर तमाम उम्र 

लेकिन कुछ ऐसे भी हैं 

जो रह जाते अनुत्तरित हमेशा के लिए 

उनमे भी कुछ भुला दिए जाते 

और कुछ अटके रह जाते हमेशा के लिए 

दिल और दिमाग में 


गूंजते धरती से लेकर 

ब्रम्हांड के सुदूर कोनों तक 

अपना जवाब पाने की बैचेनी में 

रौंदते सुख शांति घूमते रहते 

उनके पीछे भागती दुनिया 

उनकी बैचेनी में बेक़रार 


वे भी भगाते सबको 

होते आनंदित 

और चलायमान रखते 

संतुष्ट हो जाने वाली इस 

मृत प्राय दुनिया को। 


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