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Kavita Verma

Romance

4  

Kavita Verma

Romance

उन दिनों तुम 2

उन दिनों तुम 2

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480

लौटते ही घर 

झांक आते थे हर कमरे

आंगन रसोई और छत पर 

मेरी एक झलक पाने को

नजरों से पुकारा करते थे मुझे 

अपने पास आने को 


अटका देते थे एक कली मोगरे की 

जतन से पल्लू में छुपा कर उसे 

मैं सराबोर हो जाती थी 

तुम्हारे प्यार की खुशबू से 


बस यूँ ही देखा करते थे सँवरते मुझे

मेरे हाथ से लेकर सिंदूरदान 

भर देते थे सितारे मेरी मांग में 

और कर देते थे अंकित 

प्यार की मोहर मेरे माथे पर


तुम अब भी वही हो 

चाहते मुझे अंतस की गहराइयों से 

और व्यवहारिक और जिम्मेदार 

घेरे मुझे प्यार के सुरक्षा चक्र से 


लेकिन न जाने क्यों 

मुझे याद आती है 

तुम्हारी उंगलियों के पोरों की 

वो हल्की सी छुअन 

मैं याद करती हूँ 

उन दिनों के तुम। 



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