उन दिनों तुम 2
उन दिनों तुम 2
लौटते ही घर
झांक आते थे हर कमरे
आंगन रसोई और छत पर
मेरी एक झलक पाने को
नजरों से पुकारा करते थे मुझे
अपने पास आने को
अटका देते थे एक कली मोगरे की
जतन से पल्लू में छुपा कर उसे
मैं सराबोर हो जाती थी
तुम्हारे प्यार की खुशबू से
बस यूँ ही देखा करते थे सँवरते मुझे
मेरे हाथ से लेकर सिंदूरदान
भर देते थे सितारे मेरी मांग में
और कर देते थे अंकित
प्यार की मोहर मेरे माथे पर
तुम अब भी वही हो
चाहते मुझे अंतस की गहराइयों से
और व्यवहारिक और जिम्मेदार
घेरे मुझे प्यार के सुरक्षा चक्र से
लेकिन न जाने क्यों
मुझे याद आती है
तुम्हारी उंगलियों के पोरों की
वो हल्की सी छुअन
मैं याद करती हूँ
उन दिनों के तुम।