नीम तुम झरते क्यों हो?
नीम तुम झरते क्यों हो?
नीम तुम क्यों झरते हो
बारिश के बाद
जब तेज होती है धूप
धरती को गर्माहट देकर
फसलों को पकाने के लिए.
नीम तुम झरने लगते हो
जब दक्षिण की तिरछी धूप
सुकून देती है
तुम्हारे तले पड़ी खटिया पर
लेटा बूढ़ा सोचता है खाँसते हुए
खटिया को खिसकाने धूप में
नीम तुम बलिदान करके अपनी
पत्तियों और खूबसूरती का
ताती धूप पहुँचा देते हो खटिया पर।
नीम तुम झरते हो
चैत के पहले
जगह करने खाली नई कोपलों के लिए
नये वर्ष के स्वागत में।
तुम झरते हो और
दुनिया को अखरते हो
जिन्हें सुनाई नहीं देता मधुर संगीत
सूखी उड़ती पत्तियों का
धरती पर पड़ी दरारों को छुपाने का
जतन नहीं दिखता।
हौले से हरिया जाने को नहीं देख पाती
दुनिया
लेकिन तुम झरते रहना
कोई चुपके से देखता है तुम्हें
किसी के जीवन की आस बने रहते हो तुम।