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Kavita Verma

Drama

4.5  

Kavita Verma

Drama

लांग ड्राइव

लांग ड्राइव

1 min
252


आज कहीं लांग ड्राइव पर चलें

कहते हुए उसके स्वर में

उभर आई मायूसी

थोड़ी झिझक और थोड़ा सा डर

चार महीनों से दिन-रात

चार दीवारों के बीच

छत पर रेंगती छिपकली ही

आभास देती रही 

चलायमान जिंदगी का

और घूम-फिर कर

वहीं रहती जहाँ थी।


कार के बंद शीशों के परे

थमी हुई दुनिया को देखते

खुद के चलते जाने के अहसास को जीते

वह भूल जाना चाहती है

वह फिर वहीं लौटेगी वापस

जो स्थिर है अपनी स्थिति में

दिनचर्या और अहसासों में। 


सड़क किनारे हरियाली

और नीले आसमान को देखते

अचानक वह भर जाती है

अपराध बोध से

उन सभी औरतों के लिए

जिन्हें शायद जीवन भर

नहीं मिलता मौका

इन्हें देखने का 

जिनका लाॅकडाउन 

कभी खत्म नहीं होता 

मरने के बाद भी 

बंद कर दी जाती हैं 

उनकी आँखें। 



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