जिंदगी एक भ्रमजाल
जिंदगी एक भ्रमजाल
जिंदगी भी अजीब पहेली है
जितना समझता हूँ
उतना उलझ कर रह जाता हूँ
इसके भ्रम जाल में
इतनी बुरी भी नहीं है बेचारी
मगर उतनी भोली भी नहीं
सादगी के आवरण में सिमटकर
लपेट लेती हैं इंसानों की हसरतों को
कहीं धूप बनकर, कहीं छांव बनकर
इतराती है मुस्कुराकर
इसके भोलेपन के भंवर में
फंस चुके हैं कई मुसाफिर अब तलक
अपनी अल्हड़ शरारतों से
ना जाने कितनों को बेवकूफ बनाया होगा
कहीं परेशानियों के पहाड़ खड़े किए
कहीं उलझनों के गगनचुंबी टीले
कदम क़दम पर अग्नि परीक्षा के मोड़
कहीं बिछाए मुश्किलों के वीराने मरुस्थल
हकीकत में ज़िन्दगी ने बहुत घुमाया है मुझे भी
सोचता हूँ क्यों ना आज घुमाऊँ में भी
जिंदगी को मुफलिसी के गाँव में
कराऊँ सैर मजबूरियों के आसमां की
शायद समझ पाए ये भी
क्या कुछ नहीं झेला इंसान ने इसके शासन काल में।
