एक दिन मैं जरूर लौटूंगा
एक दिन मैं जरूर लौटूंगा
एक दिन मैं जरूर लौटूंगा
मिलूँगा तुम्हे वहीँ
जब बातें थी अनकही
थियेटर की अगली कुर्सियों पर
एक मणिपुरी नाटक को देखते हुए
जब पहली बार
और आखिरी बार
मेरा बायाँ हाथ था
तुम्हारे दाहिने हाथ पर
हमारी नजरें थी एक दुसरे पर
तुम अपने बाएं हाथ से
मेरे मुँह में मूंफली खिला रही थी
जो बार बार गिर जा रही थी
शायद तुम्हारा ध्यान कही और था
क्योंकि यह हमारी जिंदगी का
एक बिलकुल नया दौर था
एकाएक तुम्हारी सांसे
बहुत तेज हो गई
तुम्हारी आँखे भर गई
मेरे हाथ पर तुम्हारी पकड़
जोर से लिया तुमने जकड
लेकिन तुम कुछ नहीं कह पाई
मैं भी कुछ नहीं कह पाया
फिर ये अवसर दोबारा नहीं आया
तुमने कुछ क्यों नहीं कहा।