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संजय कुमार जैन 'पथिक'

Inspirational

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संजय कुमार जैन 'पथिक'

Inspirational

कितने कितने तिरंगे

कितने कितने तिरंगे

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जब मैं छोटा बच्चा था

बड़ी शरारत करता था

दादाजी की अलमारी में

चॉकलेट खोजा करता था

एक दिन मिल गया एक तिरंगा

बहुत पुराना, पर नहीं था गंदा

मोटा था कपड़ा, पर तीन थे छेद

दादाजी ने बताया इसका भेद

इसी तिरंगे को ओढ़ के मैं

भारत छोड़ो आंदोलन में था

जब गोली चली अंग्रेजों की

तब भी यह मेरे तन पे था

यह तीन छेद हैं गोली के

जो मैंने सीने पर खाई

पर इसका अफसोस नहीं

जब हमने आजादी पाई।

इसी तिरंगे की रक्षा को

तेरे पापा लगे हुए

मैं तो हुआ रिटायर पर

वो हैं बॉर्डर पे खड़े हुए।

मगर उसी दिन एक तिरंगा

और हमारे घर आया

जिस पर चौथा खून का रंग

जाने किसने बरसाया

उसी खून में लिपटे पापा

शहीद बनकर वापस आये

मां के आंसू बरस पड़े फिर

नहीं कहीं से रुक पाए

जब बड़ा हुआ, स्कूल गया

तब भी तिरंगा लहराया

कागज का तिरंगा हाथों में ले

खेला, कूदा, इतराया।

एक बार जोर की बारिश आई

बाढ़ में डूब गया स्कूल

15 अगस्त के दिन पर मैं

नहीं गया झंडे को भूल

तैर के स्कूल पहुँचा

माली काका को साथ लिया

किसी तरह हम दोनों ने

तिरंगा स्कूल पे फहरा ही दिया।

बहुत तिरंगे देखे मैंने

अब किस किस की बात करूं

सब्जी मंडी का एक तिरंगा

उसकी क्या तारीफ करूं

केसरिया रंग बने टमाटर

और हरा फिर बनी मटर

लहसुन से सफेद बन गया

ऐसे तिरंगा पूर्ण हो गया

देश की है पहचान तिरंगा

हम सब की है शान तिरंगा

आन, बान, अभिमान तिरंगा

हर साल तिरंगा हम फहराते

स्कूल, ऑफिस और गांव गांव में

आजादी को हम हैं मनाते

पिछले साल भी झंडा मैंने

अपनी छत पर फहराया था

कोविड में ऑफिस नहीं गए पर

घर घर में तिरंगा लहराया था।

आओ अमृत पर्व मनाएं

खादी का हो या हो पॉलिएस्टर

घर घर में तिरंगा फहराएं

फ्री का मिला या पचास का

पर यह उत्सव है विश्वास का

जिसने पहले ना फहराया

अब देखो वो भी साथ है आया

पूरा देश हुआ बौराया

घर घर तिरंगा लहराया

15 अगस्त आया,15 अगस्त आया।


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