अधिकारों के अग्रदूत
अधिकारों के अग्रदूत
लिखा उस “महान” ने, लिखा जो “सच्चाई” ने,
सह लिया जिसने “समाज” का हर “पक्षपात”,
बंद किए गए “मंदिर” के “द्वार”,
धिक्कारा जिसने “झूठे” “संस्कार”।
छोड़ दिया “धर्म”, बना “बौद्ध” महान,
“समाज” ने रोकी पत्नी की “सांस”,
“सवाल” उठे सीने में, “क्यूं” हूं मैं “दलित”?
“दलित” क्यों “बुरा”? क्यों “अधिकार” से वंचित?
लिखा उस “महान” ने,
सत्य को सजग “कलम” दी,
संविधान के “शब्दों” में,
हर “इंसान” की “जगह” दी।
मार दी गई पत्नी, इलाज न मिला,
भेदभाव की “चोट”, “जहर” बन खिला।
लिखा जिसने हर “आंसू” का हिसाब,
समाज के “जख्मों” पर रखा जवाब।
भीमराव नाम था, “संविधान” के जनक,
हर दर्द में भी बने वो दृढ़-मन,
आज “भारत” झुकता है उनके नाम,
अंबेडकर हैं “हमारे” अभिमान। ×3
