किस राह पर
किस राह पर
बहा के आँसू भी गुज़ार सकते हो तुम,
ज़िन्दगी की अठखेलियों में, यूहीं धुआं भी हो सकते हो तुम,
करके याद उन गुज़रे हुए लम्हों को तुम,
अपने आज को रूआं भी कर सकते हो तुम,
अपने अंदर समाते हुए सन्नाटों को तुम,
अपनी अंधेरे में ली सिसकियों में दबा सकते हो तुम,
माथे पर उभरती पेशानी को भी तुम,
मुकदर की चादर से ढक सकते हो तुम,
लेकिन चाहो तो बदखुमारियों को तुम,
इल्म के सांचे में डाल, अपनी किस्मत भी बदल सकते हो तुम।,
समुंदर की तिलमिलाती लहरों की कसक को तुम,
अपनी ख्वाइशों में चाहत को मिला, इक ठहराव में बदल सकते हो तुम,
फूलों से निकाल कर कांटों को तुम,
खुशबुओं के सफ़र में महक भर सकते हो तुम,
ये तुम और सिर्फ कर सकते हो तुम,
ज़िन्दगी को जिस ओर चाहे, लेजा सकते हो तुम।
