मझधार
मझधार
समन्दर में जैसे लहरों पर तैर रही ज़िन्दगी,
उफान पर है रहती जैसे हर पल, ज़िन्दगी,
सोचते हैं कि मंजिल है करीब,
और बढ़ रही ज़िन्दगी,
ना जानते हैं हम,
कि रहती है बस, मझधार में ज़िन्दगी,
ना आगे की खबर,
ना पीछे का हिसाब, रखती ये ज़िन्दगी,
बस चल रही है ये,
कहीं मचली तो कभी ठहराव में, बहती ये ज़िन्दगी,
ना जाने किस किनारे की चाहत, है ज़िन्दगी,
मंजिलों के फेरे में बस, उलझी ये ज़िन्दगी,
समन्दर में जैसे लहरों पर तैर रही ज़िन्दगी,
उफान पर है रहती जैसे हर पल, ये ज़िन्दगी…
