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Gagandeep Singh Bharara

Abstract Drama Classics

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Gagandeep Singh Bharara

Abstract Drama Classics

जिन्दा हूँ

जिन्दा हूँ

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जिन्दा हूँ, और साँसे चल रही है मेरी,

बस इतनी ही खबर आज है मुझे,


साँसों के इस ताने बाने में, हो रही है गुज़र,

बस इतना ही पता चला है, अभी तक मुझे,


जीवन का सारांश, है आख़िर क्या?

इस सवाल का जवाब, ना मिला है अब तक मुझे,


जी रहा हूँ, क्योंकि जीना है, शायद,

सफर है कोई, जिसकी मंजिल का पता ना मुझे,


इक बात मगर, दिल को छू जाती है अक्सर,

इंसा हूँ, इंसानियत में जिंदा रहना है मुझे…


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