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Shashikant Das

Drama Tragedy

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Shashikant Das

Drama Tragedy

मज़हबी खौफ!

मज़हबी खौफ!

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मज़हबी बातों से आम आदमी रह गया है दंग,

सभी धर्मों के अनुयायीयों की खुशी हुई है भंग |

रोटी, कपड़ा और मकान के लिये जिसको लड़नी थी जंग,

बाँट दिया समाज को कट्टर विचारधारा के खौफ के रंग | 


जिस पुरानी विचारों की शत्रुता को था हमें सुधारना,

अपने देश की ज्ञान रूपी गरिमा को पुरे विश्व में था फैलाना,

गुमी हुयी मानसिक आज़ादी को था फिर से पहचानना,

क्यों असमाजिक तत्वों के लिये इस विकास के खेल को था बिगाड़ना ? 


किसी भी धर्म और मज़हब में न लिखी ऐसी बातें,

जहाँ द्वेष और ईर्ष्या से होती हों खूनी मुलाकातें,

एक सुकुन भरी ज़िंदगी बिताने की है हमारी जज्बातेँ,

अपने नापाक इरादों से न बिताने दो हमें खौफ भरी ये रातें | 


सुना था बचपन में एक अच्छा सा राग,

अपने कर्मो से सींचो अपने जीवन का पराग |

क्यों अच्छे बातों के उपवन से जा रहे हैं सभी भाग,

क्यों छोड़ रहे हैं हर गली में हैवानियत के खौफ का दाग ?


दोस्तों, आज मंदिर और मस्जिद की बढ़ गयी है सीमा,

पिछड़ी मानसिक्ता के कारण अपना विकास हो गया है धीमा,

आने वाली पीढ़ी को न लग जाये इस खौफ का सदमा,

क्या ईश्वर और खुदा को लेना पड़ेगा इस खौफ को हटाने का जिम्मा ?


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