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Jiwan Sameer

Abstract

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Jiwan Sameer

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बहुत हैं

बहुत हैं

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तुमसे लगाकर दिल अक्सर पछताए बहुत हैं

इश्क़ बेपर्दा न हो अश्क हम छुपाये बहुत हैं


झूठ का हुनर नहीं सच बेअसर है बयां क्या करें 

इसी पशोपेश में कब से हम जुबां दबाये बहुत हैं


मुद्दतों बाद मेरी कब्र पर अजीब जुंबिशें हुई है

सीने में वो न जाने क्या क्या दबाये बहुत हैं


कैसे समझाओगे इन जलते हुए दियों को खामख्वाह 

हर गली मुहल्ले में सारे परवाने टकराये बहुत हैं


कभी खोनेे की खौफ कभी पाने की ख्वाहिश

ये दिलों के जंगल में तूफान सिवाये बहुत हैं!



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