बांध लो आंचल
बांध लो आंचल
बह चली बयार
लुट न जाये सिंगार
उड़ा न ले कहीं
बेताब वो तैयार
बांध लो आंचल
कहीं छूट न जाये....!
शीशे की दीवार
चलना हुआ दुश्वार
संभलना जरा
गिरे हो हर बार
थाम लो जिगर
कहीं टूट न जाये....!!
हर गली में तैयार
बैठे हैं चितचोर
बिखरे हैं इधर
तार-तार बेजार
बेदर्द जमाना है ये
कहीं लूट न जाये.....!!!
शब्दों का शहर
हर तरफ पहरेदार
चल रहे तीर कई
हो न जाये आर-पार
संभाल कर नजर
कहीं चूक न जाये.....!!!!
कर लेना इजहार
मान कर इकरार
ढील हो न कहीं
हर बात हो स्वीकार
कस लो प्यार में
कहीं रूठ न जाये......!!!!!
देह में उठा ज्वार
कर न दे खाक यार
उड़ रही आंधियां
हो जाओ खबरदार
बुझा लो अगन
कहीं फूंक न जाये.....।