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घरों के बर्तन भांडे तन मन से धो धोकर मालकिन की नजर में हरजाई थी वह औरत घरों के बर्तन भांडे तन मन से धो धोकर मालकिन की नजर में हरजाई थी वह औरत
चेष्टा थी तेरे लावन्य से धूप की सरिता बहाऊं। चेष्टा थी तेरे लावन्य से धूप की सरिता बहाऊं।
सपने देखें उन आंखों में क्यों जिनमें सुप्रबंध नहीं ! सपने देखें उन आंखों में क्यों जिनमें सुप्रबंध नहीं !
मोहब्बत में मगर हम दोनों नजर आये. मोहब्बत में मगर हम दोनों नजर आये.
तुम मुक्त भी तुम उन्मुक्त भी तट हूँ तटस्थ हूँ तुम मुक्त भी तुम उन्मुक्त भी तट हूँ तटस्थ हूँ
शब्दों का शहर हर तरफ पहरेदार शब्दों का शहर हर तरफ पहरेदार
आहत मन मैं संभालूं राहत की सांस तुम गिनो आहत मन मैं संभालूं राहत की सांस तुम गिनो
विरह की वेदना लिखूं मिलन की संवेदना लिखूं। विरह की वेदना लिखूं मिलन की संवेदना लिखूं।
है विग्रह आग्रह कहाँ है स्वर में कलह यहाँ वे मधुर बातों का गुनगुन है नहीं तबले की था है विग्रह आग्रह कहाँ है स्वर में कलह यहाँ वे मधुर बातों का गुनगुन है नह...
गुमसुम गुमसुम तुम भी मैं भी खोया खोया सा हूूँ। गुमसुम गुमसुम तुम भी मैं भी खोया खोया सा हूूँ।