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Jiwan Sameer

Abstract

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Jiwan Sameer

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गुमसुम गुमसुम तुम भी

गुमसुम गुमसुम तुम भी

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गुमसुम गुमसुम तुम भी

मैं भी खोया खोया सा हूूँ


खामोश गगन की छाया में

शंकित कुंठित तुुुम भी 

मैं भी सकुचायाा सा हूूँ

रिमझिम रिमझिम तुम भी

मैं भी भीगा भीगा सा हूूँ


आज रो लो तुम भी तनिक

मैं भी सिसकी भर लूं

बंद नयनों के आलिंगन मेें

गीतों के कलरव मधुर कर लूं


बदली बदली तुम भी

मैं भी टूटा टूटा सा हूूँ


सच्चाई के इस दलदल में

निकल झूठ के मलमल से

ढीठ संदर्भों से कटकर

राख हुए जल जल के


बिखरी बिखरी तुम भी

मैं भी रीता रीता हूूँ

हारी तो तुम भी नहीं

मैं भी अजीता अजीता सा हूँ


हंसते-हंसते रो जानेे पर

चलते चलते रूक जाने पर

रिश्तों के अजब झमेले हैं

फासलों के आयोजन पर


खुशी-खुशी में मरे मरे से

संकेेतों में सहमे सहमे से

तीब्र वेग से बढता ही जाता

ठहरा रहा जो काल युगों से


शरमाती शरमाती तुम भी

मैं भी भीता भीता सा हूूँ

दर्पण के छली पन्नों में

मैं भी खुला खुला सा हूूँ


गुमसुम गुमसुम तुम भी

मैं भी खोया खोया सा हूँ!


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