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कुमार अविनाश केसर

Abstract

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कुमार अविनाश केसर

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कैसे प्रणय गीत लिख जाऊँ

कैसे प्रणय गीत लिख जाऊँ

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जलता है संसार! कैसे मैं प्रणय गीत लिख जाऊँ ?

मानवता की हार ! कैसे मैं प्रणय गीत लिख जाऊँ ?

होठों पर चित्कार,हाय !

आँखों से रिसता पानी।

रक्त बूँद के लिए हमारी,

रीती, भरी जवानी।


जले वसंत में, जीवन का नया फाग कहाँ से लाऊँ!

फड़कीं मेरी भुजाएँ! कैसे प्रणय गीत लिख जाऊँ ?

शोर मचा हो दुनिया में

जब बारूदी नारों का!

दिखता हो चहुँ ओर मुझे,

जब, लाल रंग, तारों का।


कलम उठाऊँ, शब्द बिखेरूँ, राग कहाँ से लाऊँ ?

सिसकी लेते आँसू! कैसे प्रणय गीत लिख जाऊँ ?

जनता उलझी यक्ष - प्रश्न में,

मार्गप्रदर्शक राग - जश्न में,

जूझ रहा है मंदिर - मस्जिद,

अल्ला-अकबर, राम -कृष्ण में।


अंधे - गूँगे - बहरों के बीच कैसे सुंदर गाऊँ ?

रोता भाग्यविधाता!कैसे प्रणय गीत लिख जाऊँ ?

न्याय से सस्ती अस्मत हो

औ' ज़िल्लत भरी जवानी।

रामराज का क्या होगा ?

जब मिटा नयन का पानी !


तरस रहे जीवन के आगे कैसे स्वप्न सजाऊँ ?

भूखे पेट, कहो ! कैसे मैं प्रणय गीत लिख जाऊँ ?


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