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Lakshya Taneja

Abstract

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Lakshya Taneja

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रिश्तों की ड़ोर

रिश्तों की ड़ोर

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मेरे हाथ से बंधी डोर कहीं टूट ना जाए 

जो लचक है धागे की वो रूठ ना जाए 


ना लगे पता किसी दिन के टूट गयी 

या किसी एक छोर से छूट गयी 


नहीं पता लगेगा किसने ज़ोर आज़माया या किसने ढील दी 

या किसी पैनी सतह ने वो डोर ही छील दी 


अगर टूट जाएगी तो समेट लूँगा 

सिर्फ अपने हाथ पर लपेट लूँगा 


ना कभी ज़िक्र करूँगा ना उस डोर की बात होगी 

पर एक बात से खुश होऊंगा के उसमे ना कोई गांठ होगी 


इसीलिये डोर पकड़ो पर ज़ोर से नहीं 

खींचो भी पर कमज़ोर छोर से नहीं।


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