तेरी हर बात
तेरी हर बात
मै बावला
अति उतावला
समझ न सका
यह जो बला
गले पड़ी
फिर तेरी वह बात
याद आई वह घात
जो अपने लोग से मिले,
शिकवे गिले
अनेक मिले
जब लग सीने से
हुआ पीठ पर वार
फिर तेरी वह बात
अपनो का प्रतिघात
होता तभी
जब,जहाँ हो एतबार,
जर-जीवन के
इस मेले में
भूलना ही था
हरेक राह
ईक पथिक अंजान
था खङा तेरे द्वार
फिर तेरी वह बात
यह तो होगी
सीधे यम से मुलाकात,
तेरी हर बात
बांध रखी जिगर से
मुक्त हूँ फिक्र से सब,
तेरी हर बात
साथ रही दिलो-दिमाग के
मग्न हूूँ हर बार अब,
तेरी हर बात
अद्भूत आकर्षक
बलबूूूते इसके
सुन,बन मूकदर्शक
पहुँचा फर्श से अर्श तक,
तेरी हर बात
नेमत है मेरी।।