जीत और हार।========
जीत और हार।========
मैं जीत गया, मैं जीत गया
जो कहलाते गए बेगाने हैं
पर मैं हार गया, मैं हार गया
उन अपनों से जो कहते रहें अपने हैं।।
एक ख्वाब सजा रखा आँखों में
टूट टूट वह बिखरा ऐसा
समेट न पाया उसका टुकड़ा एक
एक एक ही रह कर कैसे हुआ अनेक।।
ख्वाब ख्वाब ही होते हैं
उन संग बँध हम क्यूँ जीते हैं
जब खुलती है आँख नींद में भी
टटोल जो न उपलब्ध क्यूँ उसे पीते हैं।।
वह क्या जाने क्या खो गया
उसे नींद थी वह सो गया
बिखरा दिया सपना सारा
कर कुछ को बिल्कुल बेचारा।।
