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Adarsh Kumar

Abstract

5.0  

Adarsh Kumar

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खिला चमेली जैसा मन

खिला चमेली जैसा मन

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मधुर मिलन की मधुरिम बेला खिला चमेली जैसा मन

मुस्काता शर्माता दुल्हन नई नवेली जैसा मन।

लज्जा पलकों पर आ ठहरी

मौन गुलाबी अधर हुए

सांसों की पावन गर्माहट

जब सांसों के प्राण छुए

छेड़ रहा जैसे अन्तस को हुआ सहेली जैसा मन

ऊँगली के मृदु स्पर्शों से

तन में सिहरन जाग उठे

उठते लाखों भाव मनस में

तब चेहरे पर फाग उठे

खिंची लकीरें उन्मादों की लगा हथेली जैसा मन

अंकित अधरों से अधरों पर

नेहिल भावों के संगम

प्रेम पीयूषी बरसातों से

भीग रहा तन मन है नम

एक दूजे में बस जाने को बना हवेली जैसा मन


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