STORYMIRROR

Dineshkumar Singh

Abstract

3  

Dineshkumar Singh

Abstract

यह दुनिया कितनी गोल है

यह दुनिया कितनी गोल है

1 min
251

यह दुनिया कितनी गोल है।

धरती का आकार ही नहीं,

उसपर चलता फिरता संसार भी गोल है।


ख़ुद में खुद को समाई हुई,

खुद के द्वारा बनाई हुई,

बाहर की दुनिया, कुछ और,

भीतर की दुनिया कुछ और हैं।

कितना झोल है।

यह दुनिया कितनी गोल है।


समय का सिकंदर रास्ते की

हर लडाई जीतते जाता।

लौटते वक़्त, पानी की लड़ाई

हार जाता।

जगजेता का ये मख़ौल है।

यह दुनिया कितनी गोल है।


घमंड ना हो किसी को अपने आप पर,

ना दौलत, ना शोहरत, ना अपने ताज पर।

मिट्टी से उठा बादशाह भी,

चार कांधो पर लौट जाता।

किस्मत का ये ही भूगोल हैं

यह दुनिया कितनी गोल है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract