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Dineshkumar Singh

Abstract Tragedy

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Dineshkumar Singh

Abstract Tragedy

तय करने में इस साल को

तय करने में इस साल को

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रात अब सोने को है,

सवेरा अब होने को है।


ओढ़ कर रजाई तुम भी

अब सो जाओ,

नींद में, गहरे सपनों में,

जाकर खो जाओ।


यह दिन काफी लंबा था।

साल भर का सफर था।


हम सोचे थे कि यह साल,

नई आशा लेकर आया है,


पर उसने तो, अपने आगोश

में बर्बादी को छुपाया था।

अपने साथ सैलाब लाया था।

मार्च, अप्रैल और मई ने

आतंक ही आतंक मचाया था।


तय करने में इस साल को,

काफी कुछ टूट गया।

कितनों की रोटियां छीनी,

कितनों के अपनों का

साथ छूट गया।


पर अब लगभग

यह साल गया है बीत,


बीत गई वो सारी बातें भी

जिनसे हुए थे तुम परेशान,

थम गई वो लड़ाइयां,

पल भर को हुआ सब आसान।


सोच सोच कर, उन बातों को,

जख्मों को, घावों को,

और ना खुद को थकाओ,

सो जाओ।


उठना फिर

नए साल के आगाज़ को,

एक नई शुरुआत को,


पर याद कुछ पिछली

बातें भी रखना,

सावधानी बरतना।


अब तो होशियार हो जाओ,

फिर वो पुरानी गलती

ना दुहराओ।


यह साल अब जाने को है,

नया सवेरा अब आने को है।


उसके इंतजार में,

ओढ़ कर रजाई तुम भी

अब सो जाओ,

गहरे सपनों में, खो जाओ।


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