नारी
नारी
वात्सल्य की तुम मूर्ति,
प्रेम की परिभाषा हो,
सृष्टि का सृजन है तुमसे,
असीमित ऊर्जा का तुम भंडार हो
बेटी, माँ,बहन,
दोस्त, सहचारिणी
अनेक रूप समेटे हो खुद में,
अपने परिवार का तुम अटल आधार हो
स्नेह का झरना हो तुम,
इसे निरंतर बहने देना,
पहचान कर अपनी शक्ति को,
जीवन को तुम नए आयाम देना
न कभी डरना, न कभी हिम्मत हारना,
आये गर कठिनाई कोई,
तो भी निडर बन कर जीवन पथ पर,
तुम यूँ ही चलते रहना
अपने बहुआयामी
व्यक्तितवा की सुगंध से,
ऐ सखी
तुम इस जग को महकाती रहना।